
India in environmental crisis Ramachandra Guha पर्यावरणीय संकट में भारत रामचंद्र गुहा
पर्यावरणीय संकट में भारत – रामचंद्र गुहा
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् रामचंद्र गुहा के अनुसार, भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पहले ही एक पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है। यह एक गंभीर चेतावनी है जो हमें इस गंभीर मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने के लिए प्रेरित करती है।
भारत की पर्यावरणीय चुनौतियां जटिल और बहुआयामी हैं। इनमें प्रदूषण, जल संकट, वन्यजीव विलुप्ति, भूमि क्षरण और जैव विविधता का ह्रास शामिल हैं। इन समस्याओं का मूल कारण विकास की एक ऐसी राह है जो प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर आधारित है।
गुहा ने अपने लेख में ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता के बाद के भारत में पर्यावरणवाद के विकास का विश्लेषण किया है। उन्होंने बताया कि कैसे औपनिवेशिक शासन के दौरान प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया गया और कैसे स्वतंत्रता के बाद भी यह प्रक्रिया जारी रही। विकास के नाम पर वनों का विनाश, नदियों का प्रदूषण और भूमि का क्षरण जारी रहा।
आज भारत एक ऐसी स्थिति में है जहां पर्यावरणीय संकट गहरा गया है। वायु प्रदूषण के स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गए हैं, नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं और भूमिगत जल स्तर तेजी से गिर रहा है। वन्यजीवों को भी खतरा है और कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं।
India in environmental crisis
इस संकट को और भी गहरा कर रही है भारत की तेजी से बढ़ती जनसंख्या। बढ़ती जनसंख्या के साथ संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे पर्यावरणीय समस्याएं और भी गंभीर हो रही हैं।
इस संकट से निपटने के लिए हमें एक व्यापक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। हमें विकास के ऐसे मॉडल को अपनाना चाहिए जो पर्यावरण के अनुकूल हो और प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग करे। हमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना चाहिए और प्रदूषणकारी उद्योगों को नियंत्रित करना चाहिए। साथ ही, हमें वन संरक्षण और वनरोपण पर ध्यान देना चाहिए और जल संरक्षण के उपायों को लागू करना चाहिए।
हमें यह भी समझना होगा कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का दायित्व नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर पर पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए। हम सभी को ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण और अपशिष्ट प्रबंधन के उपायों को अपनाना चाहिए। हमें पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने और पर्यावरणीय मुद्दों पर सार्वजनिक बहस को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है।
अंत में, यह कहना महत्वपूर्ण है कि पर्यावरणीय संकट से निपटना एक सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें सभी को मिलकर काम करना होगा और एक स्थायी भविष्य के लिए प्रयास करना होगा। हमें याद रखना चाहिए कि पृथ्वी हमारा घर है और हमें इसे संरक्षित करने का दायित्व है।
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