Important notes for Madhyamik Pariksha Heredity (आनुवंशिकता)

Important notes for Madhyamik Pariksha Heredity (आनुवंशिकता)

Important notes for Madhyamik Pariksha Heredity
Madhyamik Pariksha Heredity

Important notes for Madhyamik Pariksha Heredity

Parthenogenesis

पार्थेनोजेनेसिस: बिना निषेचन (fertilization)के ही अण्डे(egg) के भ्रूण (embryo) में विकसित जाने की क्रिया को (parthenogenesis) कहते हैं । यह sexual reprodcution की एक असामान्य विधि है । यह दो प्रकार की होती है । इस विधि में अण्डा स्वत: बिना नर जनन इकाई (male gametes) के fuse हुए ही भ्रूण (embryo) में विकसित हो जाता है । जैसे – मधुमक्खी, चींटी, अंगूर इत्यादि । समस्त नर या ड्रोन मधुमक्खी इस विधि द्वारा उत्पन्न होती हैं । इस विधि में अण्डों के कुछ रासायनिक पदार्थ जैसे ब्यूट्रिक अम्ल, वसीय अम्ल का प्रयोग करके उत्तेजित करते हैं । तापक्रम को नियंत्रित कर या विद्युत प्रभाव (electric shock) के द्वारा भी उत्तेजित करते हैं। जिसके परिणामस्वरुप अनिषेचित अण्डा (unfertilized egg) भ्रूण (embryo) में विकसित होने लगता है । इस विधि के द्वारा सी-आर्चिन, स्टारफिस, मेढ़क में भ्रूण का विकास होता है।

Vegetative Reproduction

वधी प्रजनन : पौधे का हिस्सा जो पौधे से टूटकर या अलग होकर नए पौधे की उत्पत्ति करता है उसे वर्धी प्रजनन कहते हैं । यह एक प्रकार का अलैंगिक जनन हैं । विभिन्न पौधों के जड़ तना या पत्तों से अपस्थानिक कलिका (adventitious bud) या अपस्थानिक जड़ें (adventitious root) की उत्पत्ति होती है । इस प्रकार की अपस्थानिक जड़ें या कलिकाएँ नए पौधों की उत्पत्ति करती हैं । जैसे – जड़ द्वारा सकरकन्द, मूली, गाजर, तना द्वारा जलकुम्भी, आलू अदरख, ओल, पत्तियों द्वारा बिगोनिया तथा पत्रकन्द या वलविल (bulbil) द्वारा अनन्नास, लहसून, ग्लोबा इत्यादि पौधों में अपस्थानिक कलिका अथवा जड़ों द्वारा वर्षी प्रजनन होता है ।

Asexual reproduction

अलैंगिक प्रजनन : जिस प्रक्रिया द्वारा किसी जीव के शरीर से अलग होकर एक कोशिका या शरीरांश से उसी के समान गुण सम्पन्न अन्य एक जीव की उत्पत्ति होती है, उसे अलैगिक जनन कहते हैं। यह एक विशेष प्रकार का वर्धी जनन है । इसमें जनन कोशिकाएं एवं जननांग भाग नहीं लेते । अधिकांशत: निम्न श्रेणी के पौधे तथा जन्तु इस पद्धति द्वारा अपनी वंश वृद्धि करते हैं। जैसे – मॉस, फर्न इत्यादि पौधे तथा अमीबा, यूग्लीना, स्पंज इत्यादि जन्तु । इनके अलावा भी अनेक जीव जो स्वाभाविक रूप से लैंगिक पद्धति द्वारा वंश वृद्धि करते हैं । किन्तु, किसी विशेष अवस्था के वंशीभूत होकर वे अलैगिक जनन भी कर सकते हैं । इस प्रकार की जनन प्रक्रिया एक मात्र जीव द्वारा सम्पन्न होती है।

Sexual reproduction

लैंगिक जनन : दो जनन कोशिकाओं के मिलन के फलस्वरुप जिस जनन प्रक्रिया की शुरूआत होती है, उसे लैंगिक जनन कहते हैं। साधारणतया उन्नत श्रेणी के जीवों की पुरुष जनन कोशिका (शुक्राणु) स्त्री जनन कोशिका (डिम्बाणु) की अपेक्षाकृत छोटी होती है। लैंगिक जनन के समय दोनों जनन कोशिकाओं के न्यूक्लियस आपस में जुड़ जाते हैं । इस क्रिया को निषेचन (fertilization) कहा जाता है निषेचन के फलस्वरुप भ्रूणाणु (zygote) की सृष्टि होती है । जो क्रमश: विभाजित होकर भ्रूण (embryo) की सृष्टि करता है। भ्रूण की वृद्धि के फलस्वरुप सम्पूर्ण जीव देह की रचना होती है ।

Alternation of generation

अल्टरनेशन ऑफ जेनरेशन : कुछ पौधों के जीवन चक्र (life cyle) में दो अवस्थाएं होती है । इनमें से एक को स्पोरोफाइट (sporophyte) और दूसरे को गैमिटोफाइट (gametophyte) कहते हैं । गैमिटोफाइट अर्थात् हेप्लायड (n) से स्पोरोफाइट अर्थात डिप्लायड (2n) अवस्था में परिवर्तन एवं स्पोरोफाइट से गैमिटोफाइड अवस्था में परिवर्तन की क्रिया को अल्टरनेशन ऑफ जेनरेशन कहते हैं।

Heredity

आनुवंशिकता : “जनकों (parents) के लक्षण जिस विधि के द्वारा सन्तान में प्रत्यारोहित (transmitted) होते हैं, उसको आनुवंशिकता (heredity) कहते हैं ।” अधिकांशत: देखा जाता है कि संतति में उसके माता-पिता के कुछ लक्षण मौजूद रहते हैं । जैसे -मनुष्यों में सर के बालों का झड़ना, कुछ विशेष प्रकार के नेत्र रोग इत्यादि । ये सभी वंश परम्परा के लक्षण होते हैं । प्रकृति ने मनुष्यों को एक ही आकार में बनाया है, किन्तु उनके रूप रंग व नयन-नक्स से उन्हें अलग-अलग पहचान लिया जाता है । यह भी देखा जाता है कि मनुष्यों के रूप रंग एवं नयन नक्सों की समरुपता उनके जनकों से होती है । जनकों की यह समरुपता आनुवंशिकता द्वारा ही प्राप्त होती है । आनुवंशिकता लक्षण केवल मात्र मनुष्यों में ही नहीं बल्कि पृथ्वी जगत के समस्त जीवों, पौधों एवं जन्तुओं दोनों में ही पाई जाती है ।

Mendel’s first law

मेण्डल का पहला नियम या पृथक्करण का नियम : एक गुण संकरण में यद्यपि विरोधी लक्षणों के जो का केवल एक गुण अर्थात् प्रभावी गुण ही पहली पीढ़ी (F1) में प्रगट होता है तथा दूसरा अप्रभावी गुण लुप्त रहता है किन्तु दूसरी पीढ़ी (F2) में दोनों लक्षण पुन: अलग-अलग जीवों में पृथक हो जाते हैं।
‘आनुवंशिक गुणों के विपरीत लक्षणों का इस तरह दूसरी पीढ़ी में विलग होना ही पृथक्करण का नियम कहलाता है ।’

Mendel’s second law

मेण्डल का दूसरा नियम या स्वतन्त्र अपव्यूहन का सिद्धान्त : यह मेण्डल द्वारा प्रतिपादित आनुवंशिकता सम्बन्धी दूसरा नियम है । इस नियम के अनुसार “अगर दो या दो से अधिक जोड़ा प्रतिकूल गुणों वाले माता-पिता क्रास में भाग लेते हैं तो प्रत्येक गुण अगली पीढ़ी में एक दूसरे के साथ प्रकट होने के लिए स्वतन्त्र होता है ।” अगर लम्बे तथा लाल फूल वाले मटर के पौधे का बौने तथा सफेद फूल वाले मटर में पौधे के साथ क्रास कराया जाय तो F, पीढ़ी में कुछ लम्बे लाल फूल वाले कुछ लम्बे सफेद फूल वाले, कुछ फूल वाले तथा कुछ बौने सफेद फूल वाले पौधे उत्पन्न होते हैं । अर्थात् फूल का लाल एवं सफेद रंग लम्बे पौधे के साथ तथा बौने पौधे के साथ भी प्रकट होने की लिए स्वतन्त्र होता है ।

Sex determination

लिंग निर्धारण : लैंगिग जनन Bi-sexual करने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं एक लिंगी (unisexual) तथा द्विलिंगी (hermaphrodite) । एक लिंगी जीवों में जैसे मनुष्य में नर तथा मादा जनन अंग अलग-अलग होते हैं । यही नहीं नर तथा मादा की शारीरिक रचना में अन्तर होता है । इसे लिंग भेद (sexual dimorphism) कहा जाता है । वास्तव में इन एक लिंगी जीवों के लिए लिंग भेद के बारे में उस प्रक्रिया की खोज होती रही जिसके कारण उनमें प्रारम्भ से ही (सन्तति में) लिंग भेद हो जाता है । सन् 1900 में मेण्डेलवाद की पुर्न खोज के बाद अनेक वैज्ञानिकों ने इस ओर अत्यधिक ध्यान नहीं दिया । मैकलंग (Mc: Lung) ने सन् 1902 ई० में लिंग निर्धारण का गुणसूत्र वाद (chromosomal theory of sex determination) दिया । इसके अनुसार सभी एकलिंगी जन्तुओं का लिंग (sex) उनके अनेक लक्षणों के समान गुणसूत्रों पर निर्भर करता है तथा इनकी वंशगति मेण्डल के नियमों के अनुसार ही होती है ।

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