Environmental studies

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गरीबी रेखा से आप क्या समझते हैं

गरीबी रेखा वह आय स्तर है जिसके नीचे रहने वाले लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ होते हैं. यह एक काल्पनिक रेखा होती है जो एक देश या क्षेत्र में रहने वाले लोगों को दो समूहों में बांटती है: गरीब और गैर-गरीब. गरीबी रेखा को आमतौर पर भोजन, आवास, कपड़े, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक आय के स्तर के रूप में परिभाषित किया जाता है.

गरीबी रेखा का निर्धारण विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है. सबसे आम तरीका है भोजन की लागत का उपयोग करना. यह मान लिया जाता है कि भोजन एक व्यक्ति की सबसे बुनियादी जरूरत है और इसलिए, गरीबी रेखा को उस आय के स्तर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक व्यक्ति को अपनी बुनियादी भोजन की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है.

गरीबी रेखा का निर्धारण करने का एक अन्य तरीका है आवास की लागत का उपयोग करना. यह मान लिया जाता है कि आवास एक व्यक्ति की दूसरी सबसे बुनियादी जरूरत है और इसलिए, गरीबी रेखा को उस आय के स्तर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक व्यक्ति को अपनी बुनियादी आवास की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है.

गरीबी रेखा का निर्धारण करने का एक तीसरा तरीका है बुनियादी जरूरतों की एक सूची का उपयोग करना. इस सूची में भोजन, आवास, कपड़े, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी चीजें शामिल हो सकती हैं. गरीबी रेखा को उस आय के स्तर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक व्यक्ति को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है.

गरीबी रेखा एक महत्वपूर्ण संकेतक है जो एक देश या क्षेत्र में गरीबी के स्तर को दर्शाता है. यह सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को गरीबी को कम करने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करने में मदद करता है.

पर्यावरण पर अम्लीकरण का क्या प्रभाव पड़ता है ?

अम्लीकरण पर्यावरण पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालता है. ये प्रभाव इस बात पर निर्भर करते हैं कि अम्लीकरण कहां और कैसे होता है.

  • जलीय पारिस्थितिकी तंत्र: अम्लीकरण जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है. यह जलीय जीवों के लिए रहने के लिए कठिन बना देता है, और यह मछली और अन्य जलीय जीवों के लिए भोजन के स्रोतों को भी प्रभावित कर सकता है.
  • वन: अम्लीकरण जंगलों को भी प्रभावित करता है. यह पेड़ों को बढ़ने और विकसित होने में मुश्किल बना सकता है, और यह पेड़ों को बीमारियों और कीटों के लिए अधिक संवेदनशील बना सकता है.
  • मिट्टी: अम्लीकरण मिट्टी को भी प्रभावित करता है. यह मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा को कम कर सकता है, और यह मिट्टी में रहने वाले जीवों को भी नुकसान पहुंचा सकता है.
  • मानव स्वास्थ्य: अम्लीकरण मानव स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है. यह सांस की समस्याओं, जैसे अस्थमा, को जन्म दे सकता है, और यह हृदय रोग और कैंसर के जोखिम को भी बढ़ा सकता है.

अम्लीकरण एक गंभीर समस्या है जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. यह एक समस्या है जिसे हमें गंभीरता से लेना चाहिए और इसके प्रभावों को कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए.

अम्लीकरण को कम करने के लिए हम कुछ कदम उठा सकते हैं, जैसे:

  • कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करना: कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो अम्लीकरण का कारण बनती है. हम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊर्जा दक्षता में सुधार कर सकते हैं, और हम जीवाश्म ईंधन के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग कर सकते हैं.
  • पेड़ लगाना: पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं. वे अम्लीकरण को कम करने में भी मदद करते हैं क्योंकि वे मिट्टी में कार्बन डाइऑक्साइड को फंसाते हैं.
  • पानी के प्रदूषण को कम करना: पानी के प्रदूषण से अम्लीकरण हो सकता है. हम पानी के प्रदूषण को कम करने के लिए जल निकायों को प्रदूषित होने से रोक सकते हैं, और हम सीवेज और उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण को कम कर सकते हैं.

अम्लीकरण एक गंभीर समस्या है, लेकिन यह एक समस्या है जिसे हम हल कर सकते हैं. अगर हम सभी मिलकर काम करें, तो हम अम्लीकरण को कम कर सकते हैं और पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को बचा सकते हैं.

मरुस्थलीकरण के क्या कारण हैं ?

मरुस्थलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सूखे क्षेत्रों में भूमि की उर्वरता और उत्पादकता कम हो जाती है. यह एक जटिल प्रक्रिया है जो प्राकृतिक और मानवीय कारकों के संयोजन के कारण होती है.

मरुस्थलीकरण के कुछ प्रमुख कारण हैं:

  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे क्षेत्रों में वर्षा कम हो रही है, जिससे मरुस्थलीकरण हो रहा है.
  • अतिवृष्टि: अतिवृष्टि भी मरुस्थलीकरण का एक कारण है. अतिवृष्टि के कारण मिट्टी का कटाव होता है और भूमि की उर्वरता कम हो जाती है.
  • वनों की कटाई: वनों की कटाई भी मरुस्थलीकरण का एक कारण है. पेड़ मिट्टी को नमी प्रदान करते हैं और सूखे से बचाते हैं. जब पेड़ काटे जाते हैं, तो मिट्टी का कटाव होता है और भूमि की उर्वरता कम हो जाती है.
  • अत्यधिक चराई: अत्यधिक चराई भी मरुस्थलीकरण का एक कारण है. जब जानवर अधिक मात्रा में चारा खाते हैं, तो वे मिट्टी को नष्ट कर देते हैं और भूमि की उर्वरता कम हो जाती है.
  • अनियंत्रित शहरीकरण: अनियंत्रित शहरीकरण भी मरुस्थलीकरण का एक कारण है. जब शहरों का विस्तार होता है, तो वे सूखे क्षेत्रों को घेर लेते हैं और भूमि की उर्वरता कम हो जाती है.

मरुस्थलीकरण एक गंभीर समस्या है जो लाखों लोगों को प्रभावित करती है. मरुस्थलीकरण के कारण सूखे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भोजन, पानी और आवास की कमी हो जाती है. मरुस्थलीकरण भी जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है.

मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए सरकारों और लोगों को मिलकर काम करना होगा. सरकारों को जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए नीतियों को लागू करना होगा. लोगों को वनों की कटाई को रोकना होगा, अत्यधिक चराई को रोकना होगा और अनियंत्रित शहरीकरण को रोकना होगा.

मरुस्थलीकरण को रोकना एक कठिन काम है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण काम है. अगर हम मरुस्थलीकरण को रोकने में सफल नहीं हुए, तो सूखे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए जीवन और अधिक कठिन हो जाएगा.

जलवायु परिवर्तन के क्या कारण  हैं ?

जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के जलवायु में होने वाले परिवर्तन हैं जो प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारकों से होते हैं. प्राकृतिक कारकों में शामिल हैं:

  • सूर्य का विकिरण
  • ज्वालामुखी विस्फोट
  • महासागरीय धाराएं
  • चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण

मानवीय कारकों में शामिल हैं:

  • जीवाश्म ईंधन का जलना
  • वनों की कटाई
  • कृषि
  • उद्योग

जीवाश्म ईंधन का जलना जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है. जीवाश्म ईंधन जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं. ये गैसें वायुमंडल में गर्मी को फंसाती हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है.

वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण है. पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं. जब पेड़ काटे जाते हैं, तो कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ दी जाती है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है.

कृषि और उद्योग भी जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं. कृषि से मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं. उद्योग से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं.

जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या है जो मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है. जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए हमें जीवाश्म ईंधन का जलना कम करना होगा, वनों की कटाई को रोकना होगा और कृषि और उद्योग में पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना होगा.

राष्ट्रीय हरित वाहिनी (National Green corps) क्या है?

राष्ट्रीय हरित वाहिनी (NGC) भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) का एक कार्यक्रम है. इसे 2001-02 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के लिए काम करने वाले युवा बच्चों का एक वर्ग तैयार करना था.

NGC कार्यक्रम पूरे भारत के स्कूलों में लागू किया जाता है. प्रत्येक स्कूल जो कार्यक्रम में भाग लेता है, उसमें एक NGC इको क्लब होता है, जिसका नेतृत्व एक शिक्षक और एक समूह के छात्र करते हैं. इको क्लब के सदस्य पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में भाग लेते हैं, जैसे:

  • वृक्षारोपण
  • अपशिष्ट प्रबंधन
  • जल संरक्षण
  • ऊर्जा संरक्षण
  • जैव विविधता संरक्षण
  • पर्यावरण जागरूकता

NGC कार्यक्रम स्कूली बच्चों के बीच पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करने में सफल रहा है. इसने युवा लोगों को पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल होने में भी मदद की है. NGC कार्यक्रम पर्यावरणीय स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध स्कूलों और समुदायों के लिए एक मूल्यवान संसाधन है.

राष्ट्रीय हरित वाहिनी के कुछ उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • स्कूली बच्चों के बीच पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करना.
  • युवा लोगों को पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल करना.
  • स्कूली बच्चों में पर्यावरण संरक्षण के कौशल और ज्ञान विकसित करना.
  • उन युवा लोगों का एक वर्ग बनाना जो पर्यावरणीय स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध हैं.
  • स्कूलों और समुदायों में सतत विकास को बढ़ावा देना.

राष्ट्रीय हरित वाहिनी एक मूल्यवान कार्यक्रम है जो भारत के लिए एक अधिक टिकाऊ भविष्य बनाने में मदद कर रहा है.

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