Important notes for Madhyamik pariksha Cell division

Important notes for Madhyamik pariksha Cell division
Madhyamik pariksha Cell division

Important notes for Madhyamik pariksha Cell division

Cell Division

प्रत्येक जीवित कोशिका (living cell) की बाहरी सतह एवं भीतरी आयतन (volume) में एक निश्चित सम्बन्ध होता है । जिसे सतह आयतन सम्बन्ध (surface volume relationship) कहते हैं । विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक पदार्थों का आवागमन कोशिका की सतह से होता है । पूर्ण वृद्धि प्राप्त करने के लिए आवश्यक पदार्थो के आवागमन के लिए यह सतह कम पड़ जाती है । इस स्थिति में कोशिका की क्रियाशीलता (activity) को बनाए रखने के लिए कोशिका विभाजित हो जाती है । “जिस विधि में संतति कोशिकाओं (daughter cells) का निर्माण मातृ कोशिका (mother cell) से होता है उसे कोशिका विभाजन कहते हैं।”

Amitosis or Direct cell division

असूत्री विभाजन : “इस प्रकार के विभाजन में सर्वप्रथम कोशिका तथा केन्द्रक का संकीर्णन (constriction) होता है और बाद में वह विभाजित होकरदो संतति केन्द्रक बनाता है । इसके तुरंत बाद कोशिका द्रव्य-विभाजन होता है जिससे दो नई संतति कोशिकाएँ बन जाती है ।” एमाइटोसिस कोशिका विभाजन की ऐसी विधि है जिसमें स्पिन्डिल निर्माण (spindle formation) से ही सीधे केन्द्रक बीच में संकुचित (constriction) होकर दो भागों में बँट जाता है और दो संतति कोशिकाओं का निर्माण हो जाता है इसमें केन्द्रक के विभाजन को karyokinesis कहते हैं ।

Mitosis or Indirect cell division

सूत्री विभाजन : “जिस विभाजन में एक मातृ कोशिका (mother cell) के सामान गुण एवं क्रोमोसोम की संख्या वाली दो संतति कोशिकाओं (daughter cells) का निर्माण होता है उसे माइटोसिस कोशिका विभाजन कहते हैं । यह क्रिया somatic or body cell में होती है ।”

Meiosis or reduction cell division

मिओसिस कोशिका विभाजन : जनन अंगों की कोशिकाओं (gonad cells) के विभाजन की वह विधि जिसमें द्विगुणित क्रोमोसोम की संख्या (diploid number of chromosomes) वाली एक मातृ कोशिका (mother cell) के न्यूक्लियस के लगातार दो बार विभाजन के फलस्वरुप मातृ कोशिकाbके आधे (half) क्रोमोसोम की संख्या वाली चार संतति कोशिकाओं (four daughter cells) का निर्माण होता है उसे मिओसिस कोशिका विभाजन कहते हैं।

Cytokinesis

साइटोकाइनेसिस :- साइटोप्लाज्मा के विभाजन की क्रिया को cytokinesis कहते है । जन्तुओं में cytokinesis की क्रिया karyokinesis के साथ- साथ होती है । इस क्रिया में कोशिका की ध्रुवों (poles) के मध्य में दोनों ओर से cell membrane में संकुचन या खाँच (cleavage or furrow) उत्पन्न होता है । यह furrow धीरे-धीरे गहरा होता जाता है । स्पिंडल फाइबर टूट जाते हैं । इस प्रकार साइटोप्लाज्म दो भागों में विभाजित हो जाते हैं । फलस्वरुप दो संतति कोशिका का निर्माण हो जाता है ।

Prokaryotic cell

प्रोकैरिओटिक कोशिका : यह एक अत्यन्त सरल रचना वाली आदि कोशिका है जिसमें केन्द्रक की रचना अधूरी रहती है । ऐसी कोशिका में केन्द्रक को घेरकर केन्द्रक पर्दा (nuclear membrane) नहीं रहता है । इसमें न्यूक्लिओलस (nucleolus) भी नहीं रहता है । केन्द्रक के रूप में केवल DNA का तन्तु रहता है । साइटोप्लाज्म (cytoplasm) में आवरण युक्त कोई भी रचना नहीं होती है । राइबोजोम कोशिका के साइटोप्लाज्म में विखरे रहते है । बैक्टिरिया एवं ब्लू ग्रीन एल्गी (blue green algae) इस कोशिका के उदाहरण हैं । “वह कोशिका जिसके केन्द्रक में केन्द्रीय झिल्ली, केन्द्रीय रेटिकुलम, केन्द्रीय प्लाज्मा और न्यूक्लियोलस तथा साइटोप्लाज्म में प्लास्टिड और माइटोकान्ड्रिया जैसे कोशिकांग अनुपस्थित रहते हैं , उसे प्रौकेरिओटिक कोशिका कहते हैं।”

Eukaryotic cell

यूकैरिओटिक कोशिका : यह उन्नत किस्म की कोशिका है । इसके अन्दर केन्द्रक पूर्ण रूप से विकसित होता है । केन्द्रक के चारों ओर केन्द्रक झिल्ली तथा इसके अन्दर न्यूक्लिओलस (nucleolus) पाया जाता है । सभी प्रकार के उन्नत पौधों तथा प्राणियों की कोशिकाएं इसका उदाहरण हैं । “वह कोशिका जिसके केन्द्रक के सभी अवयव उपस्थित रहते हैं तथा जिसके साइटोप्लाज्म में सभी कोशिकांग उपस्थिति रहते हैं, उसे यूकैरिओटिक कोशिका कहते हैं।”

Chromosome

क्रोमोसोम : क्रोमोसोम शब्द का प्रयोग सन् 1888 में डब्लू वाल्डेयर (W. Waldayer) ने किया था । यह एक सूतानुमा विशिष्ट रचना है जिसका गठन क्रोमैटिन थ्रेड (chromatin thread) से हुआ है । कोशिका विभाजन की विभिन्न अवस्थाओं में ये कोशिका के केन्द्रक में दिखलायी पड़ते हैं । प्रत्येक जाति (species) के केन्द्रक में इनकी संख्या निश्चित होती है । ये जोड़े में पाये जाते हैं । मनुष्य में इनकी संख्या 46 अथवा 23 जोड़े होते हैं । केन्द्रक के अन्दर पायी जाने वाली न्यूक्लिओ प्रोटीन सूतानुमा रचनाएं जिनका गठन क्रोमैटिन थ्रेड्स से हुआ है तथा जो अपने ऊपर जीन्स को धारण करती हैं उन्हें क्रोमोजोम कहते हैं ।

Genes

जीन्स :-आनुवंशिक लक्षणों की इकाई को जीन कहते है । यह DNA का अणु है जो क्रोमोजोम के ऊपर स्थित रहता है । आधुनिक विचारधारा के अनुसार सिस्ट्रॉन (cistron) जीन के कार्य की ईकाई है । एक सिस्ट्रान एक पूर्ण पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का कोड (code) बनाती है । इससे प्रोटीन संश्लेषण होता है । हरगोबिन्द खुराना तथा सहयोगियों (1970) ने यीस्ट के ऐलेनिल t-RNA (alanyl t-RNA) के प्राकृतिक जीन के समान डी. एन. ए. अणु के कृत्रिम संश्लेषण में सफलता प्राप्त की ।

DNA

सर वाटसन एवं क्रिक के मतानुसार DNA द्विचक्राकार रचना (double helical structure) है । इसमें पाली न्यूक्लिओटाइड चेन एक अक्ष रेखा पर एक दूसरे के विपरीत दिशा में कुण्डलित अथवा रस्सी की तरह ऐंठी हुई रहती है प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड की रचना deoxyribose sugar (S), फास्फेट (P) और नाइट्रोजन बेस से हुआ है । यह आनुवंशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाता है, RNA के संश्लेषण में सहायता करता है, यह सम्पूर्ण जैविक क्रियाओं का नियमन करता है ।

RNA (Ribose nucleic acid)

यह केन्द्रक एवं कोशिका द्रव्य में पाया जाने वाला राइबोज शर्करा है जिसमें मात्र एक चेन या सूत्र होता है । इसका निर्माण असंख्य न्यूक्लिओटाइट्रस से हुआ । यह भी एक poly nucleotide chain है । इसके सूत्र की रचना राइबोज शर्करा, फास्फेट, एड्रिनीन, ग्वानीन, साइटोसिन और यूरेसिल (uracil) से मिलकर गठित है । प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करना, संदेशवाहक का कार्य करना ।

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